01 August 2015

ब्लौगिंग के सात साल और 'पाल ले इक रोग नादाँ'...

...टाइम फ़्लाइज़ ! 
पहली पहली बार किसने कहा होगा ये जुमला ? 
महज दो शब्दों में सृष्टि का सबसे बड़ा सच समेत कर रख दिया है कमबख़्त ने !

तो वक़्त की इसी उड़ान के साथ ब्लौगिंग के सात साल हो गए हैं | फेसबुक के आधिपत्य के बाद से निश्चित रूप से ब्लौगिंग की अठखेलियों पर थोड़ा अंकुश लगा है, लेकिन ब्लौगिंग हम में से कितनों का ही पहला इश्क़ है और रहेगा | 

लिखते-पढ़ते इन सात सालों में हम भी ख़ुद को लेखकनुमा वस्तु मनवाने के लिए एक किताब प्रकाशित करवा लिए हैं ....हमारी ग़ज़लों का पहला संकलन | 'पाल ले इक रोग नादाँ...' की इस सातवीं वर्षगाँठ पर थोड़ा सकुचाते हुये अपने ब्लौग पर हम इस 'पाल ले इक रोग नादाँ' के मूर्त रूप का अनावरण करते हैं :- 




नब्बे ग़ज़लों के साथ कुछ खूबसूरत रेखाचित्रों का समावेश है किताब में और साथ में मोहतरम शायर डॉ॰ राहत इंदौरी साब और श्री मुनव्वर राणा साब की स्नेह बरसाती भूमिकाएँ हैं | पहले एडिशन की बस चंद बची-खुची प्रतियाँ फ्लिप-कार्ट और अमेज़न पर उपलब्ध है, जिनका लिंक ये रहा :- 

1.फ्लिप कार्ट

2. अमेज़न


ब्लौगिंग का ये इश्क़ बरक़रार रहे यूँ ही !!!