31 July 2013

ब्लोगिंग के पाँच साल और इक ज़िद्दी-सा ठिठका लम्हा...

हुश्श्श्श्श...घूमता पहिया समय का और देखते-ही-देखते पाँच साल हो गये ब्लोगिंग  करते हुये...यू हू हू sss !!! तो "पाल ले इक रोग नादां..." की इस पाँचवीं सालगिरह पर सुनिये एक ग़ज़ल :-

इक ज़िद्दी-सा ठिठका लम्हा यादों के चौबारे में
अक्सर शोर मचाता है मन के सूने गलियारे में

आता-जाता हर कोई अब देखे मुझको मुड़-मुड़ कर
सूरत तेरी दिखने लगी क्या, तेरे इस बेचारे में ?

बारिश की इक बूँद गिरी जो टप से आकर माथे पर
ऐसा लगा तुम सोच रही हो शायद मेरे बारे में

हौले-हौले लहराता था, उड़ता था दीवाना मैं
रूठ गई हो जब से तो इक सुई चुभी ग़ुब्बारे में

यूँ तो लौट गई थी उस दिन तुम घर के चौखट से ही
ख़ुश्बू एक  अभी तक बिखरी है आँगन-ओसारे में

ज़िक्र करे या फ़िक्र करे ये, या फिर तुमको याद करे
कितना मुश्किल हो जाता है दिल को इस बँटवारे में

सुर तो छेड़ा हर धुन पर, हर साज पे गाकर देख लिया
राग मगर अपना पाया बस तेरे ही इकतारे में
{वर्तमान साहित्य के जुलाई 2013 अंक में प्रकाशित }



08 July 2013

लंबी रातें, कमीना चाँद और बूढ़ा मार्क्स...

- रातों को जैसे खत्म ना होने की लत लग गयी है इन दिनों...बर्फ क्या पिघली, जाते-जाते कमबख़्त ने जैसे रातों को खींच कर तान दिया है | इतनी लम्बी रातें कि सुबह होने तक पूरी उम्र ही बीत-सी जाये !

- "रोमियो चार्ली फॉर टाइगर...ऑल ओके ! ओवर !" छोटे रेडियो सेट पर की ये धुन इन लम्बी रातों में गुलज़ार के नज़्मों और ग़ालिब के शेरों से भी ज़्यादा सूदिंग लगती है |

- बंकर के कोने में उदास पड़े सफेद लम्बे भारी भरकम स्नो-बूट्स के तस्मों से अभी भी चिपके हुये दो-एक बुरादे बर्फ के, फुसफुसाते हुये किस्सागोई करते सुने जा सकते हैं...  उन सुकून भरी रातों की  किस्सागोई, जब जेहाद के आसेबों को भी सर्दी लगती थी |

- "डेथ इज दी एक्ट ऑव क्रिएशन"...किसने कहा था ? चाँद से पूछा, मगर जवाब तारों ने दिया...होगा कोई बौखलाया जिहादी या कोई सरफ़िरा फौजी |

- और ये कमीना चाँद इतनी जल्दी-जल्दी क्यों अमावस की तरफ भागता है ? इन लम्बी रातों वाले मौसम तलक भूल नहीं सकता बदमाश अपनी फेज-शिफ्टिंग के आसमानी हुक्म को ?

- आसमान को किसी तरीके से री-बूट करने का उपाय गूगल के पास भी तो नहीं ! इक रोज़ जब लिखा उसके सर्च इंजन में तो मुआ कहता है "गॉड मस्ट बी क्रेजी" और साथ में क्वीन का वो फनी गेटअप वाला "आय वान्ट टू ब्रेक फ्री" गाना सुनवा दिया...ब्लडी इडियट !  

-  दूर उत्तरकाशी में अलकनंदा ब्रेक-फ्री होती है तो महादेव के वजूद पर ही सवालिया निशान खड़ा कर देती है और महादेव की अनुपस्थिति में चंद वर्दी वालों का डिवोशन देखकर बूढ़ा मार्क्स अपनी कब्र में बेचैन करवटें बदलता नज़र आता है |

- और डिवोशन अलग से अपनी नई परिभाषा गढ़ने लगती है...ड्यूटी की, फिलोस्फी की, फेसबुक स्टेटस की और दूरी की |

- उधर दूर...बहुत दूर, छुटकी तनया साढ़े पाँच महीने और बड़ी हो गयी है अपने पापा के बगैर ही और फोन पर कहती है "पीटर! इस बार आओगे तो हमारे लिए बर्फ लेते आना अपने ऑफिस से बहुत सारा" ...सुनकर दूर इन ऊँची चोटियों पर पीटर के बंकर में अचानक से बर्फ की बारिश होने लगती है जुलाई की भरी जवानी में भी |

- पीटर पार्कर एक तस्वीर सहेज लेता है अपनी मे डे पार्कर के लिए...बर्फ वाली तस्वीर !!!